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सिविल कानून
न्यायिक दक्षता में सुधार और त्वरित न्याय
« »14-Oct-2024
स्रोत: द हिंदू
परिचय:
भारत की राष्ट्रपति ने हाल ही में बताया कि कैसे न्यायालयी विलंब लोगों को न्याय मांगने से डराते हैं, उन्होंने इसे 'ब्लैक कोट सिंड्रोम' कहा। लोगों को डर होता है कि न्यायालय जाने से उनका जीवन और भी जटिल हो जाएगा, जिसमें अंतहीन विलंब, अपील और उच्च लागत शामिल हैं। इस समस्या का एक बड़ा हिस्सा यह है कि न्यायालय मामलों को कैसे शेड्यूल और प्रबंधित करते हैं।
न्यायालयों में विलंब के कारण क्या हैं?
- संरचनात्मक बाधाएँ:
- न्यायिक प्रदर्शन के मूल्यांकन के लिये वर्तमान "इकाइयों की प्रणाली" सरल मामलों के समाधान को बढ़ावा देती है, जिसके परिणामस्वरूप जटिल मामलों की अनदेखी होती है, जिनमें महत्त्वपूर्ण न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
- मामले के शीघ्र समाधान के लिये उच्च न्यायालयों के आदेश प्रायः ज़िला न्यायालयों की कार्यप्रणाली में व्यवधान डालते हैं, जिसके परिणामस्वरूप संसाधनों का असंतुलित आवंटन होता है और समग्र रूप से विलंब होता है।
- मामले के समाधान के लिये कानूनी समय-सीमा अक्सर निर्धारित सीमाओं से अधिक बढ़ा दी जाती है और उच्च न्यायालय सामान्यतः अपील में ऐसी देरी को क्षमा कर देते हैं।
- प्रक्रियात्मक चुनौतियाँ:
- प्रभावी केस प्रबंधन प्रणालियों की कमी के कारण सुनवाई का कार्यक्रम अप्रत्याशित हो जाता है;
- विभिन्न न्यायालयों में अनेक मामलों का संचालन करने वाले अधिवक्ता कई कारकों के आधार पर रणनीतिक रूप से यह निर्णय लेते हैं कि किस मामले की सुनवाई करनी है, जिसके परिणामस्वरूप बार-बार स्थगन होता है।
- स्थगन आदेशों और अंतरिम राहतों को उदारतापूर्वक देने से मामले के त्वरित समाधान के लिये प्रोत्साहन कम हो जाता है।
- हितधारक का व्यवहार:
- न्यायाधीशों को समय-सीमा के अनुपालन के लिये कठोरता से प्रेरित नहीं किया जाता, जिससे उन्हें "कठिन" समझा जाने का खतरा होता है और यह उनके कॅरियर की उन्नति पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।
- अधिवक्ता कार्यवाही को स्थगित किये जाने की संभावना को देखते हुए या क्लाइंट द्वारा स्पष्ट रूप से अनुरोध किये जाने पर जानबूझकर देरी कर सकते हैं।
- गवाहों को अनपेक्षित न्यायालयी कार्यक्रमों के कारण महत्त्वपूर्ण व्यक्तिगत और वित्तीय भार का सामना करना पड़ता है, जिससे अक्सर अनुपस्थिति तथा अतिरिक्त विलंब होता है।
कार्यवाही में विलंब को हल करने के लिये प्रस्तावित सुधार क्या हैं?
- प्रणालीगत सुधार:
- न्यायिक मूल्यांकन प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है:
- जटिल मामलों के समाधान को महत्त्व देने वाले संशोधित प्रदर्शन मूल्यांकन ढाँचे का कार्यान्वयन;
- निर्धारित समय-सीमा और प्रभावी केस प्रबंधन के अनुपालन को मापने वाले मेट्रिक्स का परिचय;
- कुशल न्यायालय कार्यक्रम बनाए रखने वाले न्यायाधीशों को मान्यता देने और पुरस्कृत करने के लिये तंत्र का विकास।
- न्यायिक मूल्यांकन प्रणाली में व्यापक सुधार की आवश्यकता है:
- निम्नलिखित उपाय अपनाए जाएँ:
- एक मानकीकृत, प्रौद्योगिकी-संचालित मामला प्रबंधन प्रणाली की स्थापना;
- स्थगन और स्थगन आदेश देने के लिये सख्त दिशा-निर्देशों का कार्यान्वयन;
- एक शेड्यूलिंग प्रणाली की शुरुआत जो सभी हितधारकों के लिये अधिक पूर्वानुमान प्रदान करती है।
- प्रक्रियात्मक सुधार:
- न्यायालयों को:
- शेड्यूलिंग बाधाओं की पहचान करने और उन्हें दूर करने के लिये डेटा-संचालित दृष्टिकोण अपनाना;
- मामलों की समय-सीमा की वास्तविक समय में निगरानी सुनिश्चित करना;
- न्यायालयों के विभिन्न स्तरों के बीच बेहतर समन्वय के लिये प्रौद्योगिकी का उपयोग करना।
- न्यायालयों को:
न्यायिक और व्यावसायिक नैतिकता त्वरित न्याय के अधिकार को कैसे बढ़ा सकती है?
- न्यायिक नैतिकता:
- त्वरित न्याय का अधिकार कानून के शासन का मूलभूत अधिकार है:
- न्यायाधीशों का नैतिक दायित्व होता है कि वे मामलों का समय पर निपटारा सुनिश्चित करें;
- न्यायपालिका को दक्षता और गहन तथा निष्पक्ष सुनवाई की आवश्यकता के बीच संतुलन बनाना चाहिये;
- समय-निर्धारण सुधारों को लागू करते समय न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखा जाना चाहिये।
- त्वरित न्याय का अधिकार कानून के शासन का मूलभूत अधिकार है:
- अधिवक्ताओं के लिये व्यावसायिक नैतिकता:
- अधिवक्ताओं का नैतिक कर्त्तव्य होता है कि वे:
- अनावश्यक स्थगन मांगने से बचें;
- विलंब के लिये क्लाइंट की प्राथमिकताओं पर न्याय के हितों को प्राथमिकता दें;
- केस प्रबंधन पहल में सक्रिय रूप से भाग लें।
- अधिवक्ताओं का नैतिक कर्त्तव्य होता है कि वे:
- न्याय प्रदान करने वाली संस्थाओं को नैतिक मानकों को बनाए रखना चाहिये:
- न्यायालयों को सभी वादियों के लिये न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित करनी चाहिये;
- प्रशासनिक कर्मचारियों को समय-सारिणी और रिकॉर्ड रखने में ईमानदारी बनाए रखनी चाहिये;
- संस्थाओं को अपने कामकाज में पारदर्शिता को प्राथमिकता देनी चाहिये;
- न्यायालयों को कमज़ोर वादियों और गवाहों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिये;
- व्यवस्था को सभी स्तरों पर जवाबदेही को बढ़ावा देना चाहिये।
कौन-से अल्पकालिक और दीर्घकालिक उपाय न्यायिक दक्षता तथा त्वरित न्याय में सुधार ला सकते हैं?
- अल्पकालिक उपाय:
- सभी न्यायालयों में ई-फाइलिंग प्रणाली का कार्यान्वयन;
- न्यायाधीशों और कर्मचारियों के लिये केस प्रबंधन पर प्रशिक्षण कार्यक्रम;
- समय-सीमा के पालन के लिये निगरानी तंत्र की स्थापना;
- तुच्छ स्थगन के लिये दंड की शुरुआत;
- विभिन्न श्रेणियों के मामलों के लिये विशेष पीठों का निर्माण।
- दीर्घकालिक पहल:
- केस शेड्यूलिंग और प्रबंधन के लिये AI-सहायता प्राप्त उपकरणों का विकास;
- सभी न्यायालयों में एकीकृत डेटाबेस का निर्माण;
- व्यापक न्यायिक प्रभाव मूल्यांकन तंत्र का कार्यान्वयन;
- विवादों की विशिष्ट श्रेणियों के लिये विशेष अधिकरणों की स्थापना;
- दक्षता बढ़ाने के लिये प्रक्रियात्मक कानूनों की नियमित समीक्षा और अद्यतनीकरण।
निष्कर्ष:
न्यायालयी शेड्यूलिंग में सुधार के लिये, केवल नए नियमों की स्थापना करने के बजाय, हमें समग्र परिदृश्य का अवलोकन करना आवश्यक है। इसका अर्थ है कि न्यायाधीशों के मूल्यांकन के तरीके को बदलना, अधिवक्ताओं को समय-सारिणी के बारे में बेहतर जानकारी देना, विलंब की रणनीति को हतोत्साहित करना और गवाहों के लिये मामलों को सरल बनाना। तकनीक का उपयोग सहायता प्रदान कर सकता है, लेकिन यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि इसमें वास्तविक व्यक्ति शामिल होते हैं। इस पहलू पर विचार किये बिना, कोई भी नई प्रक्रिया वास्तव में समस्या का समाधान नहीं कर सकेगी।